ज़र ज़र हुई पडी है यारो हालत मेरे मकान की

 ज़र ज़र हुई पडी है यारो हालत मेरे मकान की ,
 कहने को सब अपने है,,
 पर मदद के लिए कोई नहीं ,
 फिर किस्से  जोडूं  रिश्ता मेरा ,
ये दुनिया मेरे किस काम की ,
ज़र ज़र हुई पडी है यारो हालत मेरे मकान की,

जिनके लिए जीता हु मै, जिनके लिए मरता हूँ,
उनके लिए खरीद लाऊँ खुशिया, ज़माने से लड़ता हुँ,
वो औलाद भी ना हुई अपनी, ये घड़ियाँ भी किस काम की,
 ज़र ज़र हुई पडी है यारो हालत मेरे मकान की,

मेरे साथ मेरी हमसफ़र है,
वो भी आज मोहताज़ खड़ी है,
हिम्मत न होते हुए भी, वो मेरे लिए दुनिया से लड़ी है,
बच्चो ने इश्क़ के चक्कर में आ, ममता की बाड़ी छांग दी
जब रहे ना अपने मेरे,
तो मेरी हिम्मत भी किस काम की,
 ज़र ज़र हुई पडी है यारो हालत मेरे मकान की



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