मजबूरियां ओढ़कर निकलता हूँ घर से आजकल,
वरना शौक तो आज भी है बारिशो में भीगने का।
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पूछते थे ना कितना प्यार है तुम्हे हम से,
लो अब गिन लो... बारिश की ये बूँदें।
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वो अब क्या ख़ाक आए हाए क़िस्मत में तरसना था
तुझे ऐ अब्र-ए-रहमत आज ही इतना बरसना था
- कैफ़ी हैदराबादी
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