एहसास- ए बयां


मन की तलाश पूरी होती नहीं मंज़र ए - सुकूं,
 देखे कई मुद्दतें गुज़र गई,

तन्हाइयों में चली जा रही है ज़िंदगी,
वीराने में कई सफर गुज़र गए,

हम भी रहते किसी साहिल की तलाश में
भंवर में घिरे कई मौसम गुज़र गए,

मन चाहता है उचाईयों की बुलंदी को छूना,
गहराइयों में कई मंज़र गुज़र गए,

जब कभी सामने देखता हूँ तो दौड़ती सी लगती है ज़िंदगी,
ठहराव का आलम मिले कई क़ाफ़िले गुज़र गए,

मन ए नादान दौड़ रहा है क्यों अंजानो के पीछे,
अपनों से हमदर्दी मिले कई लम्हे गुज़र गए,

तन्हाइयों की लहरें उठती मन के सागर में तो मन,
सोचता है दुनियाँ की इस भीड़ में,
इंसानो के देखे कई दौर गुज़र गए.

Written By.........
Dharam Dev (Guru G)





       
                                         

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